सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ मनी लॉन्ड्रिंग मामले में ED को फटकार लगाई

गोविंदा चौहान I मनी लॉन्ड्रिंग मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (7 अगस्त) को जांच एजेंसी की कम सजा दर की ओर इशारा करते हुए प्रवर्तन निदेशालय से अपने अभियोजन और सबूतों की “गुणवत्ता” पर ध्यान केंद्रित करने को कहा.

सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी छत्तीसगढ़ के एक व्यवसायी सुनील कुमार अग्रवाल द्वारा दायर जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए की है. सुनील कुमार अग्रवाल को कोयला परिवहन पर अवैध लेवी से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में गिरफ्तार किया गया था.

आप सिर्फ गवाहों के बयान पर निर्भर नहीं रह सकते. आपको वैज्ञानिक सबूत भी जुटाने चाहिए. जब आप खुद साबित नहीं कर सकते कि कोई दोषी है तो उसे साबित करने का भार आरोपी पर है. घोड़े के आगे गाड़ी मत लगाइए.

सुप्रीम कोर्ट ने कही ये बात

जस्टिस सूर्यकांत, दीपांकर दत्ता और उज्जल भुइयां की 3 न्यायाधीशों की पीठ ने ED से कहा, ‘आपको अभियोजन और साक्ष्य की गुणवत्ता पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है. उन सभी मामलों में जहां आप संतुष्ट हैं कि प्रथम दृष्टया मामला बनता है, इसके बाद आप इन मामलों को लेकर न्यायालय में आ सकते हैं. 10 वर्षों में दर्ज 5,000 मामलों में से केवल 40 में सजा हुई है. ऐसे में आप खुद सोच सकते हैं. केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा ED मामलों के आंकड़ों को सदन में रखा गया था

पीठ ने ED की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू से कहा, ‘इस मामले में, आप कुछ गवाहों और हलफनामों द्वारा दिए गए बयानों पर जोर दे रहे हैं. इस प्रकार का मौखिक साक्ष्य. इस प्रकार का मौखिक साक्ष्य, कल भगवान जाने वह व्यक्ति इस पर कायम रहेगा या नहीं. आपको कुछ वैज्ञानिक जांच करनी चाहिए.’

क्या है पूरा मामला

छत्तीसगढ़ के व्यापारी सुनील कुमार अग्रवाल से जुड़े PMLA मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट कर रही थी. बता दें कि कोयला ट्रांसपोर्ट के लिए लेवी टैक्स देने के मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में सुनील को गिरफ्तार किया गया था. मई में कोर्ट ने सुनील को जमानत भी दी थी.

वहीं बेंच की अगुवाई कर रहे जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, आपको अभियोजन की गुणवत्ता पर ध्यान देने की आवश्यकता है. ये ऐसे गंभीर आरोप हैं जो इस देश की अर्थव्यवस्था को बाधित कर रहे हैं. यहां आप कुछ व्यक्तियों द्वारा दिए गए बयानों पर जोर दे रहे हैं. इस तरह के मौखिक सबूतों से क्या होगा. कल भगवान जाने कि वे इस पर कायम रहते हैं या नहीं. कुछ वैज्ञानिक साक्ष्य तो होने ही चाहि

जस्टिस दीपांकर दत्ता ने कहा, क्या धारा 19 के तहत यह गिरफ्तारी आदेश टिकाऊ है? आप यह नहीं कह सकते कि जब आप खुद साबित नहीं कर सकते कि वह दोषी है तो उसे साबित करने का भार आरोपी पर है. घोड़े के आगे गाड़ी मत लगाइए . वहीं आरोपी की ओर से मुकुल रोहतगी ने कहा कि याचिका का विरोध सिर्फ इसलिए किया जा रहा है क्योंकि इसका विरोध किया जाना है. खास बात है कि PMLA पुनर्विचार याचिकाओं की सुनवाई में जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उज्जल भुइयां शामिल हैं.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *